परिचय: जन्माष्टमी, भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाने वाला पर्व है, जो हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस बार की जन्माष्टमी विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि यह कई ज्योतिषीय योगों के साथ आ रही है, जो इसे अत्यधिक शुभ बनाते हैं। शनि के शश योग, रोहिणी नक्षत्र और सर्वार्थसिद्धि योग के संयोग ने इस जन्माष्टमी को और भी विशेष बना दिया है। इस बार शैव और वैष्णव दोनों परंपराओं के भक्त एक साथ 26 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाएंगे।
शनि का शश योग और इसकी महत्ता: ज्योतिषाचार्य पंडित अमर डब्बावाला के अनुसार, शनि ग्रह इस वर्ष कुंभ राशि में स्थित होंगे, जिससे शश योग का निर्माण हो रहा है। शश योग, भारतीय ज्योतिष शास्त्र में पंच महापुरुष योगों में से एक है, जो अत्यधिक शुभ और फलदायी माना जाता है। शनि का इस योग में होना, इस वर्ष की जन्माष्टमी को और भी विशेष बनाता है। शनि के इस योग में किए गए विधिवत पूजन और अर्चना से मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। शनि ग्रह न्याय का कारक माना जाता है और इस योग में पूजन करने से जीवन में समृद्धि, सुख और शांति की प्राप्ति होती है।
रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि का संयोग: इस बार जन्माष्टमी के दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि का अद्भुत संयोग बन रहा है, जो इस पर्व को और भी विशेष बनाता है। श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि पर रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस बार 26 अगस्त को सुबह 5 बजकर 51 मिनट से लेकर मध्यरात्रि 2 बजकर 20 मिनट तक अष्टमी तिथि रहेगी। साथ ही, रात 12 बजे श्रीकृष्ण के जन्म के समय रोहिणी नक्षत्र भी रहेगा। इस योग के साथ जन्माष्टमी का पर्व मनाना अत्यंत शुभ माना जाता है और भक्तों को भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
सर्वार्थसिद्धि योग: ज्योतिषियों के अनुसार, इस वर्ष की जन्माष्टमी पर सर्वार्थसिद्धि योग भी बन रहा है। यह योग किसी भी प्रकार की साधना, पूजा, व्रत और उत्सव के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है। इस योग में किए गए कार्य और पूजन का पूर्ण फल मिलता है और यह जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता और समृद्धि लाता है। यह योग जन्माष्टमी के महत्त्व को और भी बढ़ा देता है, क्योंकि यह भगवान श्रीकृष्ण की पूजा और आराधना के लिए अत्यधिक शुभ समय है।
शैव और वैष्णव परंपरा का एक साथ उत्सव: वर्षों बाद यह विशेष स्थिति बनी है, जब शैव और वैष्णव परंपरा के भक्त एक साथ जन्माष्टमी मनाएंगे। वैष्णव परंपरा में रोहिणी नक्षत्र के समय श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाने की परंपरा है, जबकि शैव परंपरा में उदयकाल की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार, दोनों ही पक्ष एक साथ 26 अगस्त को इस पवित्र पर्व को मनाएंगे। यह एकता और भाईचारे का प्रतीक है, जो भारतीय संस्कृति की विविधता और समरसता को दर्शाता है।
मंगल का मिथुन राशि में प्रवेश और बुध का पश्चिम में उदय: ज्योतिषीय गणना के अनुसार, इस वर्ष जन्माष्टमी के दिन मंगल ग्रह वृषभ राशि को छोड़कर मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे। यह प्रवेश काल 26 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 27 मिनट पर होगा। इसके साथ ही, बुध ग्रह का उदय पश्चिम दिशा में रात 11 बजकर 25 मिनट पर होगा। इन ग्रहों के परिवर्तन से बाजार में सुस्ती से छुटकारा मिलेगा और व्यवसायिक गतिविधियों में तेजी आएगी। साथ ही, विदेशी मुद्रा का भंडार बढ़ने की संभावना भी बनी रहेगी।
पूजन विधि और समय: जन्माष्टमी के दिन विधिवत पूजन का विशेष महत्त्व है। इस दिन भक्तगण दिनभर उपवास रखते हैं और रात में श्रीकृष्ण के जन्म के समय उनका पूजन और आराधना करते हैं। पूजन के लिए रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि का विशेष महत्त्व होता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा या तस्वीर को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से स्नान कराएं, इसके बाद वस्त्र पहनाएं और फूलों से सजाएं। फिर भगवान को माखन-मिश्री, फल और मिष्ठान का भोग लगाएं। रात 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं और उनकी आरती करें। इस समय शंखनाद और घंटियों की आवाज़ के बीच भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाना अत्यंत शुभ माना जाता है।
जन्माष्टमी के व्रत का महत्त्व: जन्माष्टमी का व्रत अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और उसे भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है। व्रत रखने वाले भक्तों को दिनभर निराहार रहकर उपवास करना चाहिए और रात में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाने के बाद फलाहार करना चाहिए। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है।
इस बार की जन्माष्टमी कई ज्योतिषीय योगों और शुभ संकेतों से परिपूर्ण है। शनि के शश योग, रोहिणी नक्षत्र, अष्टमी तिथि, सर्वार्थसिद्धि योग, और ग्रह गोचर के विशेष संयोगों ने इस पर्व को अत्यधिक शुभ बना दिया है। शैव और वैष्णव परंपरा के भक्तों का एक साथ इस पर्व को मनाना भारतीय संस्कृति की एकता और भाईचारे का प्रतीक है। इस जन्माष्टमी पर विधिवत पूजन-अर्चना कर मनोवांछित फल प्राप्त किया जा सकता है। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से सभी भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आगमन हो।
इस प्रकार, इस विशेष दिन का पूजन और व्रत अत्यधिक पुण्यकारी होगा और जीवन में नए उत्साह और ऊर्जा का संचार करेगा। सभी भक्तों को इस पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।