जबलपुर: राजस्थान के भरतपुर से एक नाबालिग लड़के की कहानी इस समय चर्चा में है, जिसने अभिनेता सलमान खान से मिलने के लिए बिना टिकट के ट्रेन में सवार हो गया। यह घटना शनिवार को हुई, जब बच्चे ने अपने घरवालों से नाराज होकर यात्रा पर निकलने का फैसला किया। उसका सपना था कि वह मुंबई जाकर सलमान खान से मिले, लेकिन उसकी यात्रा में कई मुश्किलें आईं।
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Toggleयात्रा की शुरुआत और पुलिस की सूचना
नाबालिग बच्चे के पास न तो टिकट था और न ही यात्रा के लिए पर्याप्त पैसे। जब ट्रेन में टिकट चेकिंग के दौरान टीटी ने बच्चे के पास कोई टिकट नहीं पाया, तो उसने तुरंत रेलवे पुलिस को सूचित किया। टीटी की सूचना पर, रेलवे सुरक्षा बल ने बच्चे को बामनिया रेलवे स्टेशन पर उतार लिया।
बाल कल्याण समिति की सक्रियता
रेलवे पुलिस ने बच्चे की स्थिति को देखते हुए बाल कल्याण समिति के सदस्यों को सूचित किया। बाल कल्याण समिति के सदस्य प्रदीप ओएल जैन और उनकी टीम ने तत्काल कार्रवाई की। शनिवार रात को झाबुआ लाने की प्रक्रिया पूरी करने के बाद, समिति को रात के समय बच्चे को ठहराने की समस्या का सामना करना पड़ा।
झाबुआ में नाबालिग लड़कों के लिए कोई विशेष सुविधा उपलब्ध नहीं थी, जबकि नाबालिग लड़कियों के लिए वन स्टॉप सेंटर उपलब्ध था। इस समस्या को देखते हुए, समिति ने एक अस्थायी व्यवस्था की और बच्चे को वहां सुरक्षित रखने की व्यवस्था की।
24 घंटे में घर वापसी
रविवार को अवकाश के बावजूद, बाल कल्याण समिति ने अपनी कार्रवाई को जारी रखा। समिति ने बच्चे के पिता को सूचित किया और रविवार सुबह दस बजे के आसपास बच्चे के पिता झाबुआ पहुंचे। दोपहर बारह बजे तक, सभी कानूनी प्रक्रियाओं के बाद, बच्चे को उसके पिता को सौंप दिया गया। इस पूरी प्रक्रिया को केवल 24 घंटे में पूरा कर लिया गया, जिससे बच्चे को उसके परिवार के पास सुरक्षित लौटाया जा सका।
व्यवस्था की कमी और सुझाव
झाबुआ में नाबालिग लड़कों के लिए कोई स्थायी बाल गृह न होने की समस्या सामने आई। कुक्षी और इंदौर में ही इस तरह की व्यवस्था उपलब्ध है, जिससे झाबुआ में नाबालिग लड़कों को भेजना मुश्किल हो जाता है। कुक्षी या इंदौर के बाल गृह भेजने में व्यवहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस मुद्दे पर, स्थानीय अधिकारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि झाबुआ में एक स्थायी बाल गृह स्थापित किया जाना चाहिए ताकि नाबालिग लड़कों को उचित देखभाल और आश्रय मिल सके।
कार्यकर्ताओं की भूमिका
इस मामले में रेलवे के मायाराम गुर्जर, बाल कल्याण समिति के सदस्य प्रदीप ओएल जैन, विजय चौहान, बेला कटलाना, और सामाजिक कार्यकर्ता जिम्मी निर्मल की भूमिका को सराहा गया है। इन सभी ने मिलकर नाबालिग बच्चे की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की और उसकी समस्या का समाधान किया।
राजस्थान के भरतपुर से आए इस नाबालिग की यात्रा एक महत्वपूर्ण सबक है कि बच्चों की सुरक्षा और देखभाल के लिए समाज और सरकारी तंत्र को हमेशा सतर्क रहना चाहिए। बाल कल्याण समिति की तत्परता और सक्रियता ने न केवल बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित की, बल्कि यह भी दिखाया कि सही दिशा में किए गए प्रयासों से किसी भी संकट का समाधान संभव है।
यह घटना न केवल रेलवे और बाल कल्याण समिति की जिम्मेदारी को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि समाज के विभिन्न हिस्सों की संयुक्त कार्रवाई से बड़े संकटों का समाधान किया जा सकता है। भविष्य में इस तरह की समस्याओं से निपटने के लिए झाबुआ जैसे क्षेत्रों में उचित सुविधाओं की स्थापना की आवश्यकता है ताकि नाबालिग बच्चों को किसी भी कठिनाई का सामना न करना पड़े।