Monday, December 23, 2024

रायपुर का 600 साल पुराना शिव मंदिर

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रायपुर, छत्तीसगढ़: सावन का चौथा सोमवार 2024 को पूरे देशभर में भक्तिभाव से मनाया जा रहा है। इस मौके पर रायपुर के मंदिरों में शिव भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है। खासकर रायपुर के बूढ़ेश्वर महादेव मंदिर में श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या देखी जा रही है। यह मंदिर न केवल अपनी धार्मिक मान्यता के लिए प्रसिद्ध है बल्कि इसके ऐतिहासिक महत्व को भी लोगों के बीच बहुत सम्मान मिला हुआ है।

बूढ़ेश्वर महादेव का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

रायपुर के बूढ़ेश्वर महादेव मंदिर की इतिहासिकता 600 साल पुरानी बताई जाती है। शुरुआती काल में इस मंदिर का स्थान बूढ़ातालाब के किनारे था। मान्यता के अनुसार, यहां पर स्थित शिवलिंग पर हमेशा सर्प लिपटे रहते थे। श्रद्धालु तालाब में स्नान करने के बाद इस शिवलिंग पर जलाभिषेक करते थे।

करीब 75 साल पहले पुष्टिकर ब्राह्मण समाज ने यहां एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया और शिवलिंग को प्राण प्रतिष्ठित किया। इसके बाद से ही बूढ़ेश्वर महादेव मंदिर श्रद्धालुओं के आस्था का प्रमुख केंद्र बन गया। मंदिर के पुजारी के अनुसार, आदिवासी समाज के कुल देवता बूढ़ादेव के नाम पर बूढ़ातालाब का निर्माण हुआ था। इसी तालाब के किनारे स्थित शिवलिंग को बूढ़ेश्वर शिवलिंग कहा जाने लगा और बाद में मंदिर का निर्माण कराया गया।

मंदिर की विशेषताएं:

बूढ़ेश्वर महादेव मंदिर का परिसर कई विशेषताओं से युक्त है:

  1. प्राचीन कुआं: मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुआं है, जिसका जल शिवलिंग के अभिषेक के लिए उपयोग किया जाता है। यह कुआं मंदिर की ऐतिहासिकता का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  2. भैरव बाबा की प्रतिमा: कुएं के सामने भगवान भोलेनाथ के अवतार भैरव बाबा की प्रतिमा खुले आसमान में विराजित है। इस प्रतिमा का विशेष श्रृंगार अगहन माह की अष्टमी तिथि पर सोने और चांदी के बर्क से किया जाता है।
  3. मंदिर के गर्भगृह: मंदिर के गर्भगृह में भगवान गणेश, कार्तिकेय, पार्वती और नंदीदेव की प्रतिमाएं भी प्रतिष्ठापित हैं। एक बड़े हॉल के बीच छोटा सा गर्भगृह बना हुआ है और चारों ओर विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं, जिनमें राधा-कृष्ण और श्रीराम-सीता के मंदिर भी शामिल हैं।
  4. 200 साल पुराना वटवृक्ष: मंदिर परिसर में एक 200 साल पुराना वटवृक्ष स्थित है, जो श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। इस वृक्ष के नीचे वट सावित्री व्रत पूजा करने के लिए सैकड़ों महिलाएं आती हैं। इसी वृक्ष के नीचे नृसिंह जयंती पर नृसिंह लीला का भव्य मंचन भी किया जाता है, जो प्रदेशभर में प्रसिद्ध है।

सावन सोमवार और भस्म आरती:

सावन के हर सोमवार को मंदिर में विशेष श्रृंगार और पूजा-अर्चना की जाती है। पुजारी पंडित महेश पांडेय के अनुसार, सावन के सोमवार को शिवलिंग का विविध सामग्री से श्रृंगार किया जाता है। श्रद्धालु जलाभिषेक करने के लिए मंदिर में जुटते हैं और पुराने वटवृक्ष के नीचे विशेष पूजा की जाती है।

महाशिवरात्रि और सावन महीने के दौरान मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं। महाशिवरात्रि के दिन सुबह शिवलिंग पर भस्म आरती की जाती है, जिसमें बनारस, उज्जैन और रामेश्वर ज्योतिर्लिंग से भस्म मंगवाकर उसी भस्म का लेपन किया जाता है। इस दिन सुबह से लेकर दोपहर तक जलाभिषेक होता है और शाम को भांग, धतूरा, चांदी, मालीपाणा के बर्क से विशेष श्रृंगार किया जाता है।

स्थानीय श्रद्धालुओं की प्रतिक्रिया:

मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की भावनाएं गहरी और समर्पित हैं। विशेष रूप से सावन के महीने में और महाशिवरात्रि के दिन, मंदिर में भक्तों की अपार भीड़ देखी जाती है। भक्त यहां भगवान शिव के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं और मंदिर की पावनता का अनुभव करते हैं।

स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मंदिर की धार्मिक और ऐतिहासिक महत्वता केवल भक्तों की आस्था को ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को भी संजोए रखती है। मंदिर परिसर की साफ-सफाई और पुजारियों द्वारा किए गए विशेष आयोजन श्रद्धालुओं को गहरी धार्मिक अनुभूति प्रदान करते हैं।

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