मद्रास: मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है जिसमें कहा गया है कि राज्य के सभी स्कूलों को छात्रों के स्थानांतरण प्रमाण पत्र (टीसी) में बकाया फीस के संबंध में कोई प्रविष्टि न करने का निर्देश दिया गया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि टीसी एक निजी दस्तावेज है और इसे लंबित शुल्क के लिए दबाव बनाने का साधन नहीं बनाया जा सकता।
अदालत की टिप्पणी और आदेश
मद्रास उच्च न्यायालय की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति एसएम सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति सी. कुमारप्पन शामिल हैं, ने शुक्रवार को इस मुद्दे पर सुनवाई की। अदालत ने स्पष्ट किया कि स्कूलों द्वारा टीसी में बकाया शुल्क के बारे में जानकारी शामिल करना न केवल अनुचित है, बल्कि यह बच्चों के निजी अधिकारों का उल्लंघन भी है। खंडपीठ ने तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया कि वह राज्य के सभी स्कूलों को यह आदेश जारी करे कि वे छात्रों से प्रवेश के समय टीसी प्रस्तुत करने के लिए जोर न दें और स्कूल प्रबंधन को शुल्क का भुगतान न करने या देरी से भुगतान करने सहित दस्तावेज में अनावश्यक प्रविष्टियां न करने की सलाह दें।
आरटीई अधिनियम और अन्य कानूनों की धारा
अदालत ने कहा कि टीसी के माध्यम से किसी भी प्रकार का बकाया शुल्क का संकेत देना न केवल असंवैधानिक है, बल्कि यह बच्चों की शिक्षा और उनके अधिकारों का उल्लंघन भी है। न्यायालय ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि आदेश के उल्लंघन की स्थिति में छात्रों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) की धारा 17 और बच्चों की सुरक्षा के लिए लागू प्रासंगिक कानूनों के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए।
शिक्षा नियमों और विनियमन संहिता पर पुनरावलोकन
अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह तमिलनाडु के शिक्षा नियमों और माध्यमिक स्कूलों के लिए विनियमन संहिता पर पुनरावलोकन करे। उच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार को तीन महीने की अवधि के भीतर आरटीई अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप सभी जरूरी संशोधन करने होंगे। यह कदम सुनिश्चित करेगा कि स्कूलों की कार्यप्रणाली बच्चों के अधिकारों के अनुसार हो और किसी भी प्रकार की गलतफहमी या अन्याय से बचा जा सके।
एकल न्यायाधीश के आदेश को रद्द करना
उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की ओर से दायर अपील को स्वीकार करते हुए एकल न्यायाधीश के आदेश को रद्द कर दिया। एकल न्यायाधीश ने ऑल इंडिया प्राइवेट स्कूल लीगल प्रोटेक्शन सोसायटी की याचिका को स्वीकार किया था और पाया था कि बकाया फीस के संकेत से छात्रों और उनके माता-पिता पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। हालांकि, उच्च न्यायालय ने इस दृष्टिकोण को खारिज कर दिया और इसे बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन माना।