Monday, December 23, 2024

लौह अयस्क घोटाला में एसीबी-ईओडब्ल्यू ने 540 करोड़ वसूली का खुलासा

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घोटाले का खुलासा

एसीबी (आर्थिक अपराध शाखा) और ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध शाखा) के आरोप पत्र में एक बड़े घोटाले का खुलासा हुआ है, जिसमें प्रदेश के कोयला बाहुल्य जिलों के व्यवसायियों और ट्रांसपोर्टरों से अवैध रूप से 540 करोड़ रुपये की वसूली की गई है। यह वसूली लेवी के नाम पर की गई थी और इसमें नौकरशाह, नेता और कारोबारी शामिल थे।

आपराधिक षड्यंत्र

आरोप पत्र में बताया गया है कि सिंडिकेट द्वारा एक आपराधिक षड्यंत्र के तहत प्रदेश के व्यवसायियों और ट्रांसपोर्टरों से जबरदस्ती लेवी वसूली गई। लौह अयस्क व्यवसायियों और परिवहनकर्ताओं से लेवी वसूलने के नाम पर खनिज ऑनलाइन पोर्टल की व्यवस्था में अवैधानिक आदेश पारित किए गए थे।

आरोपी

इस घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की निलंबित उपसचिव सौम्या चौरसिया, आईएएस रानू साहू, समीर बिश्वनोई, शिवशंकर नाग, संदीप नायक, कारोबारी सूर्यकांत तिवारी, पार्टनर हेमंत जायसवाल, जोगेंद्र सिंह समेत 15 आरोपियों के खिलाफ एसीबी और ईओडब्ल्यू ने गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया है। सूर्यकांत तिवारी पर लेवी वसूलकर नेताओं, नौकरशाहों, पुलिस अफसरों और जनप्रतिनिधियों को प्रोटेक्शन मनी वितरित करने का आरोप है।

लेवी वसूली का तरीका

आरोप पत्र के अनुसार, नौकरशाहों और नेताओं के गठजोड़ से बने सिंडिकेट ने लौह अयस्क के व्यवसायियों और ट्रांसपोर्टरों से 100 रुपये प्रति टन की अवैध लेवी वसूली थी, जो कोयले के लिए 25 रुपये प्रति टन के मुकाबले चार गुना अधिक थी। यह वसूली वर्ष 2018 से की जा रही थी।

अवैध आदेश और पोर्टल की व्यवस्था

खनिज ऑनलाइन पोर्टल की व्यवस्था में अवैधानिक आदेश पारित कर व्यवसायियों से लेवी वसूली गई। इस नई व्यवस्था में जब कोई कोयला परिवहनकर्ता और व्यवसायी खनिज विभाग से भौतिक अनुमति पत्र प्राप्त करने के लिए संपर्क करता था, तो उसे तब तक अनुमति पत्र नहीं दिया जाता था, जब तक वह प्रति टन के हिसाब से रिश्वत का भुगतान नहीं कर देता।

कोयला और लौह अयस्क में लेवी वसूली

जांच में यह भी पाया गया कि कोरबा जिला खनिज कार्यालय में दो रुपये प्रति टन और सूरजपुर जिला खनिज कार्यालय में एक रुपये प्रति टन अतिरिक्त वसूली की जाती थी। आयरन पैलेट के परिवहन में भी लगभग 65 करोड़ रुपये की अवैध वसूली के साक्ष्य मिले हैं।

सौम्या चौरसिया की भूमिका

वर्ष 2018 से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उपसचिव रही सौम्या चौरसिया का सरकार में काफी अधिक प्रभाव था। खनिज विभाग मुख्यमंत्री बघेल के अधीन था, जिसका फायदा उठाकर सौम्या चौरसिया ने सूर्यकांत तिवारी, उसके कारोबारी मित्रों, रिश्तेदारों, खनिज संचालनालय, विभाग और जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ मिलकर कोल लेवी वसूली सिंडिकेट के रूप में काम किया। सौम्या को सूर्यकांत के रिश्तेदार मनीष उपाध्याय के जरिए 32 करोड़ रुपये मिले थे, जिन्हें उन्होंने अपनी मां शांतीदेवी चौरसिया, पति सौरभ मोदी और अन्य रिश्तेदारों के नाम पर अचल संपत्ति में निवेश किया था।

ईडी की जांच

कोयला घोटाले की जांच ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) ने भी की थी। इसमें 540 करोड़ की लेवी वसूली किए जाने के आरोप हैं। एसीबी और ईओडब्ल्यू के आरोप पत्र में भी इसी राशि का जिक्र किया गया है। इसके साथ ही तीन सौ करोड़ रुपयों के मनी ट्रेल का हिसाब किताब भी आरोप पत्र में शामिल किया गया है।

संरचना और पर्यावरण उपकर

संरचना और पर्यावरण उपकर जमा करने के बाद कलेक्टर (खनिज शाखा) को कोयला परिवहन के लिए अभिवहन पारपत्र प्राप्त करने आवेदन देने पर कार्यालयीन सील लगाकर अभिवहन पारपत्र जारी किया जाता था।

न्यायिक प्रक्रिया

एसीबी और ईओडब्ल्यू द्वारा आरोप पत्र दाखिल किए जाने के बाद अब न्यायिक प्रक्रिया शुरू होगी। आरोपियों को न्यायालय में पेश किया जाएगा और उन पर लगे आरोपों की जांच की जाएगी। न्यायिक प्रक्रिया के दौरान सभी पक्षों की सुनवाई की जाएगी और तत्पश्चात न्यायालय निर्णय करेगा कि आरोपियों को दोषी ठहराया जाए या नहीं।

मामले का महत्व

यह मामला न केवल प्रदेश के कोयला और लौह अयस्क व्यवसायियों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे यह भी स्पष्ट होता है कि भ्रष्टाचार के मामलों में कितनी देर से भी न्याय हो सकता है। यह मामला उदाहरण है कि भ्रष्टाचार की शिकायतों को गंभीरता से लिया जाता है और दोषियों को सजा दिलाने के लिए न्यायिक प्रक्रिया चलती रहती है।

सरकारी प्रणाली में सुधार

इस मामले से यह भी स्पष्ट होता है कि सरकारी प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है। राज्य शासन को सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों और सभी सरकारी कार्य पारदर्शी ढंग से हों। इसके लिए सरकार को कड़ी निगरानी रखनी चाहिए और भ्रष्टाचार के मामलों में सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।

समाज के लिए संदेश

यह मामला समाज के लिए भी एक संदेश है कि भ्रष्टाचार को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। आम जनता को भी अपनी आवाज उठानी चाहिए और भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करनी चाहिए। इस मामले से यह भी स्पष्ट होता है कि न्याय की प्रक्रिया में देर हो सकती है, लेकिन न्याय मिलता जरूर है।

लौह अयस्क घोटाले में एसीबी और ईओडब्ल्यू के आरोप पत्र ने 540 करोड़ रुपये की अवैध वसूली का खुलासा किया है। इस घोटाले में नौकरशाहों, नेताओं और कारोबारियों की मिलीभगत से प्रदेश के व्यवसायियों और ट्रांसपोर्टरों से अवैध रूप से लेवी वसूली गई थी। न्यायिक प्रक्रिया शुरू हो गई है और आरोपियों को न्यायालय में पेश किया जाएगा। यह मामला न केवल प्रदेश के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे यह भी स्पष्ट होता है कि भ्रष्टाचार के मामलों में न्याय की प्रक्रिया चलती रहती है और दोषियों को सजा दिलाने के लिए प्रयास किए जाते हैं।

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