Saturday, January 11, 2025

कचरे की बोरी में दबे सपने: श्रमिक बस्तियों के बच्चों की दुर्दशा

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अटल आवास और श्रमिक बाहुल्य बस्तियों में बच्चों की शिक्षा का हाल बुरा है। उनके हाथों में किताबों की जगह कचरे की बोरी है और ध्यान पढ़ाई की जगह कबाड़ के ढेर पर। दीगर प्रांत से जीविकोपार्जन के लिए आए श्रमिक अभिभावक अपने बच्चों को काम पर भेज रहे हैं और कचरा संग्रहित करवा रहे हैं। शैक्षणिक सत्र 2024-25 में आरटीई के तहत निजी स्कूलों के अलावा आत्मानंद विद्यालय में दाखिले के लिए प्रक्रिया चल रही है, लेकिन इसका लाभ इन बस्तियों के बच्चों को नहीं मिल रहा।

शैक्षिक अवसरों से वंचित बच्चे

शहर में घुमंतू और कचरा उठाने वाले बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। कंधे पर बोरा लटकाए ये बच्चे व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के आसपास कचरा तलाशते नजर आते हैं। आरटीई से इन बच्चों को जोड़ने के लिए शिक्षकों की टीम पिछले तीन साल से नहीं बनाई गई है। इससे अटल आवास और श्रमिक बस्तियों के अधिकांश बच्चे स्कूल जाने से वंचित रह जाते हैं। शिक्षा विभाग में इन बच्चों का कोई आंकड़ा नहीं है और मुफ्त की किताबें, मध्यान्ह भोजन जैसे कार्यक्रम भी इन्हें लाभ नहीं पहुंचा पा रहे हैं।

कोरोना काल में बढ़ी समस्याएं

कोरोना काल में श्रमिक क्षेत्रों में ऑनलाइन पढ़ाई का बच्चों को लाभ नहीं मिला। इस दौरान भले ही पढ़ाई ठप रही लेकिन कबाड़ का कारोबार खूब चला। जीवीकोपार्जन के लिए कचरा उठाने वाले बच्चों की संख्या बढ़ती गई। अज्ञानतावश अभिभावक भी बच्चों को कचरे की कमाई में धकेल रहे हैं। विद्यालयों में नामांकन रजिस्टर में खानापूर्ति के लिए इन छात्रों का नाम दर्ज कर दिया जाता है, लेकिन उनके शिक्षा स्तर की पूछपरख नहीं होती।

शिक्षा से वंचित बच्चे

सर्व शिक्षा अभियान नियम के अनुसार शाला त्यागी व शाला अप्रवेशी विद्यार्थियों को स्कूल में दाखिला देना आवश्यक है, लेकिन शहर के श्रमिक बस्तियों में यह नियम पालन नहीं हो रहा। इंडस्ट्रियल क्षेत्र के रिस्दी और 15 नंबर ब्लॉक सहित अन्य अटल आवास में रहने वाले बच्चे बाल श्रमिक के रूप में विभिन्न संस्थानों में काम कर रहे हैं। शिक्षा विभाग की ओर से इन बच्चों की पढ़ाई की सुध नहीं ली जा रही।

शिक्षा सेतु की आवश्यकता

प्राथमिक या मिडिल की पढ़ाई छोड़ चुके बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा में जोड़ने के लिए पहले ‘सेतु-पढ़ाई’ की व्यवस्था की गई थी। इसके लिए शिक्षकों को प्रशिक्षित भी किया जाता था, लेकिन कोरोना काल में यह बंद हुई और अब तक शुरू नहीं हुई। बच्चों के अभिभावकों से ज्यादातर संवाद पुलिस या चाइल्डलाइन का ही होता है। ज्यादातर मामलों में काउंसिलिंग के बाद पता चलता है कि कचरा उठाने का काम अभिभावक ही करवा रहे हैं, जिससे उनके खिलाफ संवैधानिक कार्रवाई करना मुश्किल होता है।

शिक्षा विभाग की उदासीनता

शिक्षा संचालनालय ने अटैचमेंट समाप्त करने का स्पष्ट आदेश जारी किया है, लेकिन शिक्षा विभाग से लेकर खंड कार्यालय और आदिवासी विकास विभाग अटैच शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं। जिन स्कूलों से शिक्षकों को अटैच कर दिया गया है, वहां पढ़ाई के नाम पर केवल खानापूर्ति हो रही है। कक्षा पहली से पांचवीं तक दो शिक्षक और एक प्रधान पाठक का सेटअप है, वह भी अटैचमेंट की भेंट चढ़ गया है। शहर के अंधरी कछार, रामपुर, एनसीडीसी, सीतामढ़ी आदि स्कूल अतिरिक्त शिक्षकों से भरे पड़े हैं। विभाग की ओर से नियम तय नहीं किए जाने के कारण गांव के स्कूल सीमित शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं।

आपराधिक घटनाओं में संलिप्तता

अशिक्षा से जूझ रहे श्रमिक बस्ती और अटल आवास के वे बच्चे, जिनके अभिभावक दीगर प्रांत से यहां जीविकोपार्जन के लिए आए हैं, छोटी-बड़ी चोरियों और आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त हो रहे हैं। कबाड़ में इनकी खास नजर होती है। अधिकांश घुमंतू बच्चे बोनपिक्स, कोरेक्स और नशीली दवाओं के आदी हो चुके हैं। उनके लिए नशे के लिए पैसे जुटाना पहली प्राथमिकता है, जिसके लिए वे पढ़ाई छोड़ पैसे के जुगाड़ में लगे रहते हैं।

समाधान के प्रयास

घुमंतू और कचरा इकट्ठा करने वाले बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा में जोड़ने के लिए शिक्षकों की टीम गठित की गई है। इन शिक्षकों के माध्यम से बच्चों को शिक्षा के अधिकार का लाभ देने के लिए अभिभावकों को समझाया जा रहा है। लेकिन इन प्रयासों के बावजूद, शिक्षा विभाग और स्थानीय प्रशासन की उदासीनता के कारण बच्चों की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है।

अटल आवास और श्रमिक बस्तियों के बच्चों की दुर्दशा एक गंभीर समस्या है। इनके हाथों में किताबों की जगह कचरे की बोरी और ध्यान पढ़ाई की जगह कबाड़ के ढेर पर होता है। शिक्षा विभाग और स्थानीय प्रशासन की ओर से ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है ताकि इन बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा में लाया जा सके और उनका भविष्य सुधारा जा सके। अभिभावकों को भी जागरूक किया जाना चाहिए ताकि वे अपने बच्चों को पढ़ाई के महत्व को समझ सकें और उन्हें शिक्षा के अवसर प्रदान कर सकें।

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