मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के गौरिहार तहसील अंतर्गत किशनपुर गांव में स्थित आल्हा ऊदल का किला एक ऐतिहासिक धरोहर है, जो अब पर्यटन और पुरातत्व विभाग की लापरवाही के कारण जर्जर हो रहा है। यह किला एक टापू पर बना हुआ है, जिसके चारों ओर तालाब थे, जो सुरक्षा के लिहाज से इसे और भी अभेद बनाते थे। आज भी इन तालाबों में कुएं और बावड़ी तक पहुंचने के गुप्त मार्ग देखे जा सकते हैं, जो इस किले की सुरक्षा को और मजबूत बनाते थे। लेकिन अब इस किले की स्थिति दयनीय हो चुकी है, और इसकी दरकती दीवारें इसकी बदहाली की कहानी बयां कर रही हैं।
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Toggleऐतिहासिक महत्व और गुप्त मार्ग
आल्हा ऊदल का किला एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। जानकार बताते हैं कि एक गुप्त मार्ग (सुरंग) केन नदी के टापू पर स्थित रनगढ़ के दुर्ग तक जाता है। एक अन्य गुप्त मार्ग जुझार नगर तक भी जाता है, जिसे अब बारीगढ़ के नाम से जाना जाता है। किवदंती के अनुसार, आल्हा ऊदल के पिता दशराज यहाँ रहते थे, और आल्हा ऊदल का जन्म भी यहीं हुआ था। किले के एक हिस्से में आल्हा की छठी दीवार पर अंकित थी, जिसमें “आल्हा की छठी” लिखा था। लेकिन दफीना यानी जमीन में गड़ा खजाना खोदने वालों ने उस स्थान को भी खोखला कर दिया, जिससे किला और भी जर्जर हो गया है।
संरक्षण के अभाव में खंडहर
किले के संरक्षण के अभाव में यह अब खंडहर में तब्दील हो चुका है। दफीना खोदने वालों ने किले के विभिन्न हिस्सों में खुदाई कर इसे और भी जर्जर कर दिया है। इस किले की एक खासियत यह भी है कि आल्हा ऊदल यहीं रहते थे और रियासत पर निगरानी रखते थे। किले को पहले दशपुरवा के किले के नाम से जाना जाता था। इसके आस-पास घना जंगल होने की वजह से यह जगह आल्हा ऊदल के शिकार के लिए भी पसंदीदा थी। किले के कुछ किलोमीटर की दूरी पर आल्हम देवी माता का शक्तिपीठ भी है, जहां आल्हा ऊदल ने देवी मां की आराधना की थी। इस स्थान पर मंदिर बन जाने के बाद इसका नाम आल्हा मां के नाम से विख्यात हुआ, जो कालांतर में अपभ्रंश होकर आल्हम देवी के नाम से आज भी जाना जाता है।
पर्यटन विभाग की लापरवाही
गौरिहार के रहने वाले और इतिहास के जानकार शिक्षक ब्रजकिशोर पाठक का कहना है कि इस किले को संरक्षित करने के लिए कई बार पर्यटन विभाग को पत्र लिखा गया है, लेकिन उनकी मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। पर्यटन और पुरातत्व विभाग की टीम ने किले का दौरा किया, लेकिन उन्होंने इसे पर्यटन और आय की दृष्टि से उचित नहीं माना। टीम का कहना था कि शासन के करोड़ों रुपए फंस सकते हैं और मनी रिफंड नहीं होगी क्योंकि यहां पर पर्यटन की संभावनाएं नहीं हैं।
संभावनाएं और सुझाव
इतिहासकार और स्थानीय निवासी इस किले की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को देखते हुए इसकी तत्काल मरम्मत और संरक्षण की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि यदि किले को संरक्षित किया जाए तो यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन सकता है, जो न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रसिद्ध हो सकता है। इसके अलावा, किले की मरम्मत और संरक्षण के लिए एक विशेष योजना बनाई जानी चाहिए, जिससे इसकी ऐतिहासिक महत्ता को संरक्षित किया जा सके और भविष्य में इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखा जा सके।
आल्हा ऊदल का किला मध्य प्रदेश की एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर है, जो अपनी पुरानी grandeur और ऐतिहासिक गाथाओं को समेटे हुए है। लेकिन पर्यटन और पुरातत्व विभाग की लापरवाही के कारण यह धरोहर अब खंडहर में बदल रही है। अगर इसे समय रहते संरक्षित नहीं किया गया, तो यह अनमोल धरोहर हमेशा के लिए खो सकती है।