Tuesday, December 24, 2024

फास्ट ट्रैक कोर्ट तेजी से न्याय की प्रक्रिया

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भारतीय न्याय व्यवस्था में अक्सर लंबे समय तक चलने वाली कानूनी प्रक्रियाओं और अदालती तारीखों का जिक्र होता है, जिससे आम लोगों की उम्मीदें और धैर्य दोनों ही जवाब दे सकते हैं। ऐसे में फास्ट ट्रैक कोर्ट की अवधारणा न्याय की गति को तेज करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। आइए जानते हैं फास्ट ट्रैक कोर्ट क्या है, इसकी विशेषताएँ और किन केसों की यहां सुनवाई होती है।

फास्ट ट्रैक कोर्ट की परिभाषा

फास्ट ट्रैक कोर्ट, जैसा कि नाम से स्पष्ट है, उन अदालतों को संदर्भित करता है जिनका उद्देश्य न्याय की प्रक्रिया को तीव्र गति से पूरा करना है। इन कोर्टों की स्थापना मुख्य रूप से उन मामलों के लिए की जाती है जो अत्यंत संवेदनशील और जटिल होते हैं, जैसे कि यौन अपराध और महिलाओं के खिलाफ हिंसा। भारत में फास्ट ट्रैक कोर्ट की शुरुआत महिलाओं और बालिकाओं के खिलाफ अपराधों के त्वरित न्याय के लिए की गई थी।

फास्ट ट्रैक कोर्ट की शुरुआत

2018 में भारतीय सरकार ने आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम के तहत यौन अपराधियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया। इस कानून के तहत रेप और अन्य गंभीर यौन अपराधों के मामलों की त्वरित सुनवाई और फैसले की दिशा में कदम उठाए गए। इसके अंतर्गत अक्टूबर 2019 से फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स (FTC) की स्थापना की गई, साथ ही विशेष पॉक्सो न्यायालयों की भी स्थापना की गई। इस योजना का उद्देश्य पीड़ितों को जल्द न्याय दिलाना है।

फास्ट ट्रैक कोर्ट की संरचना

हर फास्ट ट्रैक कोर्ट में एक न्यायिक अधिकारी और सात सदस्य कर्मचारियों का प्रावधान होता है। यह संरचना सुनिश्चित करती है कि मामले की सुनवाई और निर्णय प्रक्रिया तेजी से पूरी हो सके। फिलहाल, देश के कुल 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इस योजना को लागू किया जा चुका है।

केस की निगरानी और कार्यान्वयन

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मई 2024 तक 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 410 विशेष पॉक्सो कोर्ट और 755 फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स काम कर रही हैं। इन कोर्टों ने 2,53,000 से अधिक मामलों का निपटारा किया है। फास्ट ट्रैक कोर्टों की निगरानी के लिए न्याय विभाग ने एक ऑनलाइन निगरानी पोर्टल तैयार किया है, जिसके माध्यम से कोर्टों के आंकड़े मासिक आधार पर अपडेट किए जाते हैं। इसके अलावा, हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल और राज्यों के पदाधिकारियों के साथ नियमित समीक्षा बैठकें भी आयोजित की जाती हैं।

फास्ट ट्रैक कोर्ट का कार्यप्रणाली

फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना और संचालन का निर्णय संबंधित राज्य सरकार अपने यहां के हाईकोर्ट के साथ चर्चा करके लेती है। हाईकोर्ट यह तय कर सकता है कि किसी मामले की सुनवाई कितने दिनों में पूरी की जानी चाहिए। इसके आधार पर, फास्ट ट्रैक कोर्ट मामले की सुनवाई का शेड्यूल तय करता है—किसी मामले को रोजाना सुना जा सकता है या कुछ दिनों के अंतराल पर सुनवाई हो सकती है। सभी पक्षों की सुनवाई के बाद, फास्ट ट्रैक कोर्ट निर्धारित समय सीमा में अपना फैसला सुनाता है।

फास्ट ट्रैक कोर्ट के लाभ

पारंपरिक अदालतों की तुलना में, फास्ट ट्रैक कोर्ट में मामलों की सुनवाई और फैसले की गति काफी तेज होती है। कई मामलों में, फास्ट ट्रैक कोर्ट ने एक सप्ताह के भीतर ही निर्णय सुनाया है, जो कि सामान्य अदालतों की तुलना में काफी तेजी से है। यह व्यवस्था विशेष रूप से उन मामलों के लिए महत्वपूर्ण है जो समाज के लिए अत्यधिक संवेदनशील होते हैं और जिनमें पीड़ितों को त्वरित न्याय की आवश्यकता होती है।

विशेष केसों की सुनवाई

फास्ट ट्रैक कोर्ट में आमतौर पर उन केसों की सुनवाई की जाती है जो गंभीर अपराधों से संबंधित होते हैं, जैसे कि बलात्कार, यौन शोषण, हत्या, और अन्य गंभीर अपराध। इसके अलावा, इन कोर्टों को किसी भी विशेष केस को त्वरित सुनवाई के लिए अपील की जा सकती है, जिससे न्याय की प्रक्रिया को तेज किया जा सके।

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