बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ हमलों की बढ़ती घटनाएं सामने आई हैं। कई हिंदू मंदिरों और घरों पर हमला किया गया है, जिसके खिलाफ हिंदू समुदाय ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए हैं। इन घटनाओं के मद्देनजर, अल्पसंख्यक समूहों ने अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस को पत्र लिखकर सुरक्षा की मांग की है।
इस पृष्ठभूमि में, रश्मि बजाज ‘कबीरन’ की एक कविता सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। यह कविता उन भावनाओं और निराशाओं को व्यक्त करती है जो इन घटनाओं से प्रभावित लोगों के दिलों में गहराई से समाई हुई हैं। कविता का शीर्षक है “ऐ बांग्लादेशी हिंदू लड़की!” और यह कविता न केवल इस समय की परिस्थितियों पर सवाल उठाती है बल्कि एक गहरी सामाजिक टिप्पणी भी पेश करती है।
कविता
अच्छा किया जो उठा ली तुमने अपने हाथ रबाब और खुद ही गा रही हो अपनी पीड़ा!
ऐ लड़की, रबाब, कलम या राइफल हम ज़िंदा मुर्दों से तुम कोई उम्मीद ना रखना!
हमने कुछ नहीं देखा हमने कुछ नहीं सुना ना ‘उन्हें’ ना ‘तुम्हें’ ना कश्मीर ना पश्चिमी बंगाल ना बांग्लादेश ना अफगानिस्तान ना इराक ना ईरान कहीं भी! दिल दहलाती चीखें दम तोड़ती इंसानियत मसले-कुचले जिस्म सच,हमने आज तक नहीं देखा नहीं सुना कुछ भी कहीं भी..
लड़की, तुम नहीं जानती हमारी मज़बूरी हमारी हालत हमारी लाचारी— गाहे-बगाहे हो जाते हैं हम गूंगे ही नहीं— अपाहिज, बहरे और अंधे भी!
रश्मि बजाज ‘कबीरन’
कविता की परतें और अर्थ:
रश्मि बजाज ‘कबीरन’ की यह कविता एक गहरी और तीव्र आलोचना प्रस्तुत करती है। कविता की शुरुआत में कवि ने बांग्लादेशी हिंदू लड़की की पीड़ा को रबाब के माध्यम से व्यक्त किया है। रबाब, एक प्रकार का वाद्य यंत्र है, जो आमतौर पर दर्द और अभिव्यक्ति के प्रतीक के रूप में उपयोग होता है। कवि ने इसे यह संकेत देने के लिए उपयोग किया है कि लड़की ने अपनी पीड़ा को खुद ही गाया है, जैसे कि कोई खुद अपने दुःख को व्यक्त करता है।
इसके बाद कवि ने एक कठिन सच्चाई को उजागर किया है: उन्होंने कहा है कि हम, जो अब “ज़िंदा मुर्दों” में बदल चुके हैं, किसी भी उम्मीद को पूरा नहीं कर सकते। इस भावनात्मक बयान में कवि ने समाज के बुरे हालात और उसके प्रति लोगों की निष्क्रियता को उजागर किया है। यह बयान एक प्रकार की निराशा और असहायता को दर्शाता है।
कवि ने अपनी कविता में वैश्विक दृष्टिकोण को भी छुआ है। उन्होंने दुनिया के विभिन्न हिस्सों का नाम लेते हुए बताया है कि मानवता के संकट और दुख केवल एक जगह नहीं हैं, बल्कि हर जगह फैले हुए हैं। कश्मीर, पश्चिमी बंगाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, इराक और ईरान—ये सभी स्थान, जहां संघर्ष और पीड़ा व्याप्त हैं, का नाम लेते हुए कवि ने यह दर्शाने की कोशिश की है कि इन दुखद घटनाओं की कोई सीमा नहीं है।
कविता के अंत में, कवि ने गहरी पीड़ा के साथ यह दर्शाया है कि कई लोग अपनी हालत और लाचारी के कारण गूंगे, बहरे और अंधे हो जाते हैं। यहाँ पर ‘गूंगे’, ‘बहरे’, और ‘अंधे’ शब्दों का उपयोग न केवल शारीरिक विकलांगता के लिए किया गया है, बल्कि इसे मानसिक और भावनात्मक अपंगता के रूप में भी देखा जा सकता है। यह उन लोगों की स्थिति को दर्शाता है, जो समाज की कठिनाइयों और पीड़ा को न तो सुन सकते हैं, न देख सकते हैं और न ही महसूस कर सकते हैं।
इस कविता के माध्यम से, रश्मि बजाज ‘कबीरन’ ने समाज की आलोचना की है और मानवता के संकट पर सवाल उठाया है। यह कविता एक प्रकार की सामाजिक और राजनीतिक टिप्पणी है, जो हमें सोचने पर मजबूर करती है कि हम किस तरह से समाज की समस्याओं और अल्पसंख्यक समुदायों के संकट को अनदेखा करते हैं।
सोशल मीडिया पर वायरल हो रही इस कविता ने न केवल बांग्लादेश में हो रही घटनाओं पर प्रकाश डाला है, बल्कि वैश्विक स्तर पर मानवता की स्थितियों पर भी गंभीर प्रश्न उठाए हैं। यह कविता उन सभी लोगों के लिए एक ज्वलंत संदेश है जो समाज में हो रही अराजकता और मानवता के पतन को नजरअंदाज कर रहे हैं