शहरों के साथ-साथ अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी अपशिष्ट का विकराल स्वरूप देखने को मिल रहा है। नदी, नालों, तालाबों में अपशिष्ट फेंके जाने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, जिससे जल स्रोत तेजी से प्रदूषित हो रहे हैं। विशेष रूप से इंस्टेंट नूडल्स, बिस्कुट, चिप्स, शैंपू, बालों के तेल और क्रीम के पाउच जैसी वस्तुएं ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्य हो गई हैं, जो कचरे की समस्या को और बढ़ा रही हैं। लेकिन, इस चुनौती का सामना करने में शिवतराई की महिलाएं प्रेरणादायक भूमिका निभा रही हैं।
कचरा प्रबंधन में महिलाओं की भूमिका
शिवतराई के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं कचरा प्रबंधन में आगे आई हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट “स्वच्छ भारत” को पूरा करने में अपनी जिम्मेदारी निभा रही हैं। इन महिलाओं ने कचरे से खाद बनाने की प्रक्रिया को अपनाया है, जिससे न केवल स्वच्छता बनी रहे, बल्कि स्वावलंबन का संदेश भी फैल रहा है। वे गांव की गलियों से कचरे को इकट्ठा करती हैं, उसे एक जगह डंप करती हैं और कंपोस्ट बनाने की प्रक्रिया को कुशलतापूर्वक निभा रही हैं।
पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता
वनांचल के गांवों में महिलाएं कचरा प्रबंधन के साथ ही पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी जागरूकता फैला रही हैं। पहले गांवों में पेड़ों के पत्तों से बनी प्लेट, दोना, कांच की बोतल और स्टील के डब्बे का उपयोग होता था, जिससे अपशिष्ट की मात्रा बहुत कम होती थी। लेकिन अब पालिथीन के बैग, प्लास्टिक के कप, गिलास, बिस्कुट और चिप्स के रैपर जैसे वस्त्र गांवों में कचरे के ढेर के साथ नजर आते हैं। इस बदलाव के परिणामस्वरूप, प्लास्टिक कचरा कृषि भूमि और जल स्त्रोतों को दूषित कर रहा है, जिससे गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
कृष्णा महिला समूह की पहल
कृष्णा महिला समूह ने प्लास्टिक कचरे के निपटान और निष्पादन के लिए विशेष कदम उठाए हैं। इस समूह की महिलाओं ने आपस में राशि इकट्ठा करके रिक्शा खरीदी और कचरा इकट्ठा करने का काम शुरू किया। उनकी मेहनत को देखते हुए ग्राम पंचायत शिवतराई की सरपंच और पंचों ने भी इस पहल में सहयोग देने का निर्णय लिया। समूह समन्वयक नंदनी के अनुसार, गीले कचरे से खाद बनाने का काम शुरू कर दिया गया है, जबकि सूखे कचरे को विक्रय के लिए तैयार किया जाएगा।
कंपोस्ट खाद की बिक्री और जैविक खेती
महिला स्व-सहायता समूह ने कंपोस्ट खाद बनाने की प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा किया है। इस खाद की बिक्री गांव के किसानों को की जाएगी। शिवतराई के किसान पिछले पांच वर्षों से जैविक खेती कर रहे हैं और रासायनिक खाद का उपयोग नहीं कर रहे हैं। गांव में हल्दी का भी उत्पादन किया जा रहा है और हल्दी के प्रोसेसिंग यूनिट को भी स्थापित किया गया है। इसके अलावा, पैकेजिंग और मार्केटिंग का कार्य भी गांव की महिलाओं के हाथों में है।
शिवतराई की महिलाओं द्वारा किए जा रहे कचरा प्रबंधन और स्वच्छता के प्रयास ग्रामीण क्षेत्रों में एक नई क्रांति का प्रतीक हैं। उनकी मेहनत और लगन न केवल गांव की स्वच्छता को बनाए रख रही है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर भी बना रही है। इस प्रयास से यह भी साबित होता है कि छोटे-छोटे कदम भी बड़े बदलाव ला सकते हैं, और जब महिलाओं को सशक्त किया जाता है, तो वे समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती हैं।