सावन माह की शुरुआत 22 जुलाई से होने जा रही है। इस दौरान देशभर से श्रद्धालु भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन करने मध्य प्रदेश के मंदसौर पहुंचते हैं। इस मंदिर में भगवान शिव की एक दुर्लभ अष्टमुखी मूर्ति स्थापित है, जो अनंत श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।
मूर्ति का अनावरण और इतिहास
भगवान शिव की यह अद्वितीय मूर्ति सन 1940 में शिवना नदी की रेत से बाहर निकाली गई थी। विक्रम संवत 1997 में ग्रीष्मकाल के दौरान, जब नदी का जलस्तर कम हो गया, तब सर्वप्रथम उदाजी को मूर्ति का कुछ अंश दिखा। उन्होंने समाजसेवक बाबू शिवदर्शनलाल अग्रवाल को इस बारे में सूचना दी। इसके बाद, सभी के सहयोग से रेत में दबी मूर्ति को बाहर निकाला गया।
पेड़ की छांव में रखी गई मूर्ति
बाबू शिवदर्शनलाल अग्रवाल ने 14 जोड़ी बैलों की सहायता से जुती हुई गाड़ी से मूर्ति को महादेव घाट के ऊपर एक पेड़ की छाया में रखा और इसका संरक्षण किया। वर्ष 1961 में, चातुर्मास में विराजमान स्वामी श्री प्रत्यक्षानंद महाराज का ध्यान इस मूर्ति पर गया और मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी सोमवार 27 नवंबर 1961 को शुभ मुहूर्त में अष्टमुखी भगवान शिव की दिव्य मूर्ति की प्रतिष्ठापना की गई। उसी समय स्वामी श्री प्रत्यक्षानंदजी ने ‘श्री पशुपतिनाथ महादेव’ नाम उदघोषित किया।
अष्टमुखी मूर्ति की विशेषता
भगवान श्री पशुपतिनाथ की दुर्लभ मूर्ति 7.25 फीट ऊंची, गोलाई में 11.25 फीट, और वजन में 125 मन यानी 46 क्विंटल है। शिल्प शास्त्र के अध्येताओं के अनुसार यह मूर्ति गुप्त औलिंकर युग में निर्मित जान पड़ती है। अष्टमुखी मूर्ति में बाल्यकाल, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था का सजीव अंकन है। यह मूर्ति गुप्तकालीन मानी जाती है। महाकवि कालिदास ने अपने ग्रंथ में मंगलाचरण में अष्टमूर्ति शिव की आराधना की है।
सावन माह का विशेष महत्व
सावन माह में हर सोमवार को हजारों कांवड़ यात्री भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन करने आते हैं। इस महीने के अंतिम सोमवार को शाही सवारी निकाली जाती है, जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस दौरान मंदिर परिसर में भक्तों का भारी जमावड़ा होता है और पूरे शहर में धार्मिक उत्साह का माहौल होता है।
कैसे पहुंचे मंदसौर
मंदसौर में रेलवे स्टेशन है, जहां से देश के विभिन्न हिस्सों से ट्रेन द्वारा पहुंचा जा सकता है। इसके साथ ही पास में शामगढ़, सुवासरा, नीमच और रतलाम स्टेशन भी उपलब्ध हैं। बस के जरिए भी मंदसौर देश के कई बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। यात्रियों की सुविधा के लिए कई बस सेवाएं उपलब्ध हैं, जो श्रद्धालुओं को सीधे मंदसौर पहुंचाती हैं।
धार्मिक आस्था का केंद्र
भगवान पशुपतिनाथ की अष्टमुखी मूर्ति के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंदिर परिसर में स्थित यह मूर्ति सभी उम्र के भगवान शिव के रूपों का सजीव चित्रण करती है।
सावधानी और सुरक्षा
हर साल सावन माह में हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है, इसलिए प्रशासन और मंदिर प्रबंधन द्वारा विशेष सुरक्षा व्यवस्था की जाती है। श्रद्धालुओं को भीड़-भाड़ में सावधानी बरतने और प्रशासन द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने की सलाह दी जाती है।
धार्मिक गतिविधियां और अनुष्ठान
सावन माह में भगवान पशुपतिनाथ के मंदिर में विभिन्न धार्मिक गतिविधियां और अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। भक्तों के लिए विशेष पूजा, अभिषेक और हवन का आयोजन होता है। मंदिर के पुजारियों और धार्मिक गुरु द्वारा भक्तों को भगवान शिव की महिमा और उनकी पूजा विधि के बारे में जानकारी दी जाती है।
सावन माह का प्रारंभ और भगवान पशुपतिनाथ के मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ इस बात का प्रमाण है कि मंदसौर धार्मिक आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यहां आने वाले भक्त भगवान शिव की अष्टमुखी मूर्ति के दर्शन कर अपने जीवन को धन्य मानते हैं। सावन माह में विशेषकर यहां का वातावरण भक्तिमय हो जाता है, जो हर श्रद्धालु के लिए एक अद्वितीय अनुभव होता है।
भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन के लिए सावन माह में मंदसौर आने वाले श्रद्धालुओं को मंदिर प्रबंधन और प्रशासन द्वारा सभी आवश्यक सुविधाएं और सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराई जाती हैं। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारतीय संस्कृति और इतिहास का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।