छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट, बिलासपुर ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत अपना पहला फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की सिंगल बेंच ने रेलवे स्टेशन की पार्किंग में कांस्टेबल से मारपीट करने के आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है। यह मामला राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ रेलवे स्टेशन का है, जहाँ पार्किंग विवाद के चलते कांस्टेबल आदित्य शर्मा के साथ मारपीट हुई थी।
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6 जून 2024 को डोंगरगढ़ रेलवे स्टेशन पर पार्किंग को लेकर विवाद हुआ था, जिसमें कांस्टेबल आदित्य शर्मा पर कुछ लोगों ने हमला किया था। इस घटना की रिपोर्ट थाने में दर्ज कराई गई, जिसमें पहले भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 294, 323, 34, 506 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। बाद में पीड़ित के जीआरपी कांस्टेबल होने के कारण आईपीसी की धारा 186, 332, 353, 325/34 को भी शामिल किया गया।
बीएनएस का प्रारंभिक फैसला
हाई कोर्ट ने हाल ही में भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) को लागू किया है। 1 जुलाई 2024 से ये नए कानून प्रभावी हो गए हैं, और इन्हीं के तहत इस अग्रिम जमानत याचिका पर फैसला सुनाया गया है।
अग्रिम जमानत याचिका खारिज
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की सिंगल बेंच ने बीएनएस की धाराओं के तहत आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। यह फैसला बीएनएस के तहत हाई कोर्ट का पहला फैसला है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकारी कार्य में बाधा डालने और लोकसेवक के साथ मारपीट करने जैसे गंभीर आरोपों के मामलों में अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती।
हाई कोर्ट रूल्स में संशोधन
हाई कोर्ट ने एक दिन पहले ही राजपत्र में अधिसूचना प्रकाशित कर हाई कोर्ट रूल्स में संशोधन किया था। इसके तहत आईपीसी, सीआरपीसी और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह तीन नए आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) लागू किए गए हैं।
बीएनएस के तहत नए फैसले
बीएनएस के तहत यह पहला मामला है जिसमें हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है। बीएनएस के तहत दिए गए इस फैसले का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह नए कानूनों के तहत न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और सख्ती को दर्शाता है।
मारपीट की घटना के परिणाम
डोंगरगढ़ रेलवे स्टेशन पर हुई इस मारपीट की घटना ने स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों में चिंता पैदा कर दी है। पार्किंग विवाद जैसे मामूली मुद्दों पर हिंसा और सरकारी कर्मियों के साथ मारपीट जैसी घटनाएं कानून व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती बन सकती हैं। ऐसे मामलों में न्यायालय का सख्त रुख अपनाना आवश्यक है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
समाज में संदेश
इस फैसले से समाज में एक महत्वपूर्ण संदेश जाएगा कि सरकारी कार्य में बाधा डालना और सरकारी कर्मियों के साथ मारपीट करना गंभीर अपराध है और ऐसे मामलों में न्यायालय किसी भी प्रकार की ढिलाई नहीं बरतेगा। यह फैसला उन लोगों के लिए भी एक चेतावनी है जो कानून को अपने हाथ में लेने का प्रयास करते हैं।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का यह फैसला न्यायिक प्रणाली में नए कानूनों के प्रभावी और सख्त अनुपालन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत दिया गया यह पहला फैसला न्यायिक सुधारों और पारदर्शिता को बढ़ावा देगा। इससे न केवल कानून व्यवस्था में सुधार होगा बल्कि सरकारी कर्मियों की सुरक्षा और सम्मान को भी सुनिश्चित किया जा सकेगा