Wednesday, December 25, 2024

छत्तीसगढ़ सरकार की नई पहल आदिवासी क्षेत्रों की प्राथमिक शिक्षा में स्थानीय भाषाओं का समावेश

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छत्तीसगढ़ सरकार जल्द ही राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा में स्थानीय भाषाओं और बोलियों को शामिल करेगी। इस पहल का उद्देश्य आदिवासी समुदायों में शिक्षा की पहुंच और गुणवत्ता को बढ़ाना है ताकि बच्चे अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त कर सकें और अपनी संस्कृति से जुड़े रह सकें। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने शिक्षा विभाग को इस पहल के लिए 18 स्थानीय भाषाओं और बोलियों में द्विभाषी पुस्तकें तैयार और वितरित करने का निर्देश दिया है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के अनुरूप

यह पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत की जा रही है, जिसका उद्देश्य बच्चों के लिए उनकी मूल भाषाओं में शिक्षा को अधिक समावेशी और सुलभ बनाना है। एनईपी 2020 के अनुसार, बच्चों को उनकी मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा देने से उनकी समझ और सीखने की क्षमता में वृद्धि होती है।

5 जुलाई को ‘शाला प्रवेश उत्सव’ (स्कूल प्रवेश उत्सव) के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान, सीएम विष्णुदेव साय ने कहा था कि इस पहल के तहत पाठ्यपुस्तकों और शिक्षण सामग्री का स्थानीय बोलियों में अनुवाद किया जाएगा और शिक्षकों को भी इन भाषाओं में प्रशिक्षित किया जाएगा।

स्थानीय भाषाओं में द्विभाषी पुस्तकें

स्कूल शिक्षा सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेशी ने बताया कि छत्तीसगढ़ में स्कूली बच्चों के लिए 18 स्थानीय भाषाओं और बोलियों में किताबें तैयार की जा रही हैं। पहले चरण में छत्तीसगढ़ी, सरगुजिहा, हल्बी, सादरी, गोंडी और कुडुख में पाठ्यक्रम तैयार किए जाएंगे। इसके लिए राज्य भर के साहित्यकारों, लोक कलाकारों और संकलनकर्ताओं की मदद ली जाएगी। इसके अलावा वरिष्ठ नागरिकों और शिक्षकों से भी सहयोग लिया जाएगा।

 आदिवासी समुदाय की शिक्षा में सुधार

इस पहल का उद्देश्य आदिवासी बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा देकर उन्हें आगे बढ़ने का मौका देना है। हाई स्कूल बगिया के प्राचार्य दिनेश शर्मा ने इस कदम की सराहना करते हुए कहा कि आदिवासी बच्चों में प्रतिभा होती है और स्थानीय बोली में शिक्षा से आदिवासी क्षेत्रों के अधिक से अधिक बच्चों को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।

एनईपी 2020 का तीन-भाषा फॉर्मूला

एनईपी 2020 में तीन-भाषा फॉर्मूले के अनुसार, भारत के प्रत्येक छात्र को तीन भाषाएं सीखनी चाहिए, जिनमें से दो मूल भारतीय भाषाएं होनी चाहिए, जिसमें एक क्षेत्रीय भाषा शामिल होनी चाहिए और तीसरी अंग्रेजी होनी चाहिए। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जनवरी 2020 में इसी तरह की घोषणा की थी। इस घोषणा के तहत स्थानीय भाषाओं और बोलियों को प्राथमिक शिक्षा में शामिल करने का प्रावधान किया गया था।

 सामुदायिक सहयोग और समर्थन

सरकार की इस पहल को सफल बनाने के लिए राज्य भर के साहित्यकारों, लोक कलाकारों, संकलनकर्ताओं, वरिष्ठ नागरिकों और शिक्षकों का सहयोग लिया जा रहा है। यह सामुदायिक सहयोग आदिवासी बच्चों की शिक्षा को समृद्ध और समावेशी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

भविष्य की दिशा

छत्तीसगढ़ सरकार की यह पहल एक महत्वपूर्ण कदम है जो राज्य के आदिवासी बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करेगी। यह न केवल उनकी शैक्षणिक प्रगति में सहायक होगी बल्कि उनकी सांस्कृतिक पहचान को भी सुदृढ़ करेगी। आदिवासी समुदायों में शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार से सामाजिक और आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहन मिलेगा।

छत्तीसगढ़ सरकार की यह पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्यों को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल आदिवासी बच्चों की शिक्षा में सुधार होगा बल्कि उनकी सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षित किया जा सकेगा। राज्य सरकार की यह पहल अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल कायम कर सकती है, जिससे देशभर में शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार हो सके।

छत्तीसगढ़ सरकार की यह पहल एक सकारात्मक कदम है जो आदिवासी समुदायों की शिक्षा में सुधार लाने के साथ-साथ उनकी सांस्कृतिक पहचान को भी संरक्षित करेगी। यह पहल शिक्षा के क्षेत्र में एक नई दिशा प्रदान करेगी और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्यों को साकार करने में सहायक सिद्ध होगी। आदिवासी बच्चों की मातृभाषा में शिक्षा की यह पहल उनके शैक्षणिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

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